सुनहला को टोपाज के नाम से भी जाना जाता है. यह कई रंगों में उपलब्ध होता है किन्तु सबसे अधिक यह हल्के पीले रंग में पहना जाता है. जो व्यक्ति बृहस्पति का रत्न पुखराज खरीदने में असमर्थ होते हैं उन्हें सुनहला पहनने की सलाह दी जाती है. यह एक पीला कुछ पारदर्शी स्फटिक है.
सुनहला उपरत्न धारण करने से व्यक्ति विशेष में ऊर्जा का पुनर्निर्माण होता है. जिन व्यक्तियों में ऊर्जा के निर्माण में कमी हो रही है उनकी यह उपरत्न मदद करता है. इस रत्न के धारण करने से ऊर्जा प्राप्ति में विलम्ब नहीं होता है. इस उपरत्न की बहुत सी खूबियाँ है जिनमें से एक यह है कि इसे धारण करने से व्यक्ति अच्छी बातों को सीखने के लिए प्रेरित होता है और प्राकृतिक स्त्रोतों से ऊर्जा ग्रहण करके वह बुद्धिमानी से काम लेता है. व्यक्ति विशेष में संतुलन रहता है.
सुनहला पीले रंग अपनी सुंदरता और बनावट से पहचाना जाता है. यह चमकदार हो इस पर किसी प्रकार की कोई लाइन या धारियां नहीं होनी चाहिए. चिकना एवं स्पष्ट होना चाहिए. यह उपरत्न पीले से भूरे रंग की ओर जाते हुए कई शेड लिए होता है. इसे अंगूठी, ब्रसलेट, पेन्डेंट रुप में जैसे चाहें यूज कर सकते हैं.
प्राकृतिक अवस्था में पाए जाने वाला सुनहला बहुत कम उपलब्ध होता है. कृत्रिम सुनहला बाजार में अत्यधिक मिलता है. इसकी चमक को देखकर व्यक्ति भ्रमित होकर पुखराज समझ लेता है. लेकिन दोनों रत्नों को सामने ध्यान से देखने पर अन्तर स्पष्ट दिखाई देता है. पुखराज से अधिक स्पष्टता सुनहले में दिखाई देती है. कई बार पुखराज के बचे टुकडों को जोड़कर सुनहला का निर्माण किया जाता है.
सुनहला का उपयोग बृहस्पति ग्रह के प्रभाव को शुभ देने में सहायक होता है. कई बार ग्रह अपने गुणों को देने में सक्षम नही हो पाता है. इस रत्न को धारण करने से गुरू ग्रह से संबंधित सभी लाभ प्राप्त होते हैं.
बृहस्पति सभी नौ ग्रहों में एक बहुत ही शुभ ग्रह माना गया है. कुण्डली में गुरु की शुभता व्यक्ति को ऊचांईयों तक पहुंचाने वाली होती है. गुरु के ही शुभ प्र्भाव से व्यक्ति एक सफल वक्ता और समाज सुधारक भी बनता है.गुरु मैनेजमेंट के गुण देता है. जातक को काम करने के बेहतर स्किल देने वाला होता है. इस के प्रभाव से व्यक्ति बोल चाल में तो कुशल होग अही उसका ज्ञान भी परिष्कृत होगा. लोग उस जातक से प्रभावित होकर उसके पास खिंचे चले आ सकते हैं.
पर दूसरी ओर अगर बृहस्पति की शुभता पूर्ण रुप से नहीं मिल पाए या किसी कारण से जन्म कुण्डली में बृहस्पति ग्रह कमजोर है तो इस स्थिति में व्यक्ति अपने ज्ञान को उचित रुप से संभाल नहीं पाता है, वह स्वयं भी भटकाव में होता है. बौद्धिकता में उन्नत नहीं रह पाता है. ऎसे में इस स्थिति से बचने के लिए गुरु के अनेक उपाय बताए गए हैं जिनमें से एक पुखराज रत्न को धारण करने की बात भी कही गई है. जो छात्र पढ़ाई में कमजोर हैं या जिन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करनी हैं उन्हें इसका उपयोग करने से सफलता प्राप्त होती है
पुखराज गुरु का रत्न है लेकिन बहुत महंगा भी है ऎसे में उपरत्न का उपयोग भी मुख्य रत्न की भांति ही कारगर सिद्ध होता है. पुखराज के उपरत्न के रुप में सुनहला उपरत्न को पहना जा सकता है.
जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बृहस्पति अच्छे भावों का स्वामी है और पीड़ित अवस्था में स्थित है तब उन्हें पुखराज पहनने की सलाह दी जाती है. सभी व्यक्तियों की सामर्थ्य पुखराज खरीदने की नहीं होती. इस कारण उन्हें पुखराज का उपरत्न सुनहला खरीदने की सलाह दी जाती है. इस उपरत्न को धारण करने से भी सकारात्मक फल मिलते हैं.
पन्ना, हीरा तथा इन दोनों के उपरत्न धारण करने वाले व्यक्तियों को पुखराज का उपरत्न धारण नहीं करना चाहिए. अन्यथा यह प्रतिकूल फल प्रदान कर सकता है.
सुनहला उपरत्न को शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार के दिन धारण करना चाहिए. इसे सोने या पीतल धातु में जड़वाकर पहन सकते हैं. बृहस्पतिवार के दिन प्रात:काल समय पर शुभ समय इस उपरत्न को कच्चे दूध और गंगाजल में डालें फिर इसे धूप दीप दिखा कर बृहस्पति के मंत्र - "ॐ बृं बृहस्पतये नम:" का उच्चारण करते हुए इसे पहनना चाहिए.
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